Acrylic and mixed media knife painting on 11x14 canvas |
दर्पणों में झाँकना,
अपने आप पर मुस्कुराना
ज़रूरी होता है...
बहुत वक़्त गुज़ारा है
हमने
प्रतिबिम्बों से छुपते
छुपाते
परछाइयों से घबराते...
इक डर सा लगता था शायद
अपनी ही नज़रों से आप नज़रें मिलाते
आकस्मात कभी किसी अपने
से
जब भी मुलाक़ात हुई
उनकी नज़रों में कुछ ऐसा पाया
जो खुद नहीं पहचाना था
कभी
कोई ऐसी बात थी
जो दूसरों को भा जाती थी कहीं
पर खुद को हमने जब तलाशा
तो कुछ भी समझ ना आया
और आइनों से हम कतराते रहे
इक अँधेरा सा था छा रहा
दम घुटने लगा था मेरा
बेबसी से वो नाता
सन्नाटों में था दफना रहा
अँधेरों में, दर्पण भला कैसे नज़र आते हमें?
फिर अचानक कहीं से,
सूरज की इक हल्की किरण
इक आईने से जा टकराई
उस फीकी सी धूप में
ना जाने थी कैसी गरमाई
कि उस आईने में से हमें
इक मुस्कान, इक उम्मीद सी नज़र आई
टकटकी बाँध
उस दर्पण से हम जुड़ गए
जब खुद से सामना हुआ यकायक
भौंचक्के से हम रह गए
कई सवाल उठे, कई जवाब बुने
आँखें इस तरह बह उठीं
ना जाने क्या क्या कह गयीं
आँसुओं कि बौछारें जब थमी
तो देखा आईने पर
अब भी धूप थी खिली
आँसुओं से, आईने भी साफ़ हो जाया करते हैं
इस सफाई की शायद बहुत ज़रुरत थी
हमें
हो सकता है इक सच्चाई की आवश्यकता कहीं थी हमें
दर्पण जब साफ़ हो जाएँ
तो प्रतिबिम्ब स्पष्ट नज़र आते हैं
अपने आप से नज़रें मिलाने पर
मन के जाले खुद मिट जाते हैं
अपने दर्पण से हमारी घनिष्ठ सी दोस्ती हो गयी
अब रोज़,
खुद से हम मिलते हैं
सजते और सँवरते हैं
खूब अब बतियाते हैं
मुस्कुराते-खिलखिलाते हैं
जब कभी कुछ समझ ना आये तो
आईने का सहारा ले लेते हैं
अपनी ही आँखों में हमें
प्रश्न और उत्तर सब मिल जाते हैं
इसीलिए,
दर्पणों में झाँकना,
अपने आप पर मुस्कुराना,
प्यार से सहलाना,
खुद अपना साथ निभाना...
ज़रूरी होता है
Seattle, October 22,
2011
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Peeking into mirrors
Smiling at oneself
Is essential
I’ve spent a long time
Shying away from reflections
Scared of my own shadow
Fearful perhaps
Of locking eyes with
Myself
Often, those I held dear
Reflected something back
In their eyes
They recognized
Something within
That to me
Seemed elusive
And I kept hiding from the mirrors
A dark night of the soul
Hiding amidst the shadows
Claustrophobia overwhelmed
The silence of my own helplessness
Un-hinged, un-helmed
How could I see the mirrors in the dark?
Suddenly
A little ray of light
Touched the mirror
I don’t know how
That weak sunlight
Lit up some hope
Lit up a weak smile
The mirror arrested me
Meeting myself suddenly
I was mesmerized
Unending questions
A flurry of answers
Flowed through these eyes
When the rains stopped
I noticed there was still
Some sunshine left behind
Tears too, can clear up mirrors
Perhaps this cleansing was necessary
Meeting the truth essential
When the mirrors are clean
Reflections appear more clearly
Meeting oneself
Clears the cobwebs away
My mirror became a close friend
Now
I meet myself everyday
Have long conversations
Laugh and smile openly
When things get hard
I lean on my mirror
And in my own eyes
Find all the answers to my questions
And so,
Peeking into mirrors
Smiling at,
Loving myself
Being my own best friend
Is essential
- Translated from
Hindi on Jan7, 2012
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pallavi so touching but so beautiful too
ReplyDeleteit is essential for all of us to see clearly in the morror
smile be happy n in peace with yourself
love yourself the most
Thank you for sharing your thoughts and glad it resonated for you!
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