Saturday, May 24, 2014

A message - एक संदेश

You shy away
You fly
Far, far away
Astray 

You try
To wrest control
You plan
You think
You know it all 

You resist
Me on every turn
You desist
From giving
Me my turn

You assume
You're better off without me
So you subsume
Your true self
You put on your mask
Get busy with
A meaningless task

But I'm here
For a reason
My dear
I'm here
In every season

You shun me
Like a pariah
How do I tell you
I'm no Messiah
  
I'm only here
To show you the way
To keep you from going astray

So you can see
Who you're meant to be
Who you really are

They call me 'fear'
My dear
But I am simply
The other face
Of Love
 - May 19, 2014
तुम शर्माते हो 
भाग जाते हो 
दूर कहीं 
गुमराह हो जाते हो 

तुम नियंत्रण हथियाने 
की कोशिश में 
योजनाएँ बनाते हो 
खयाली पुलओ पकाते हो 
समझते हो तुम सब जानते हो 

हर मोड़ पर विरोध 
चाहे कितना भी
मैं कर लूँ अनुरोध 
अब तो है मेरी बारी  


पर नहीं
तुम्हे लगता है 
तुम मेरे बिना ही बेहतर हो 
इक मुखौटा पहन
व्यस्त हो जाते हो तुम 
काम अपना लेते हो अर्थहीन  


पर मैं यहीं हूँ प्रिये 
कोई तो है कारण 
मैं हूँ यहीं 
चाहे जो भी हो मौसम 

अछूत हूँ जैसे मैं 
सदा तुम  जताते हो 
मसीहा  सही 
आओ कुछ बताता हूँ 

सिर्फ हूँ यहाँ 
रास्ता दिखाने के लिए 
भटकने से तुम्हें 
बचाने के लिए 

ताकि देख सको तुम भला 
कौन बन सकते हो तुम 
कौन हो तुम आप से ये 
कर सको मशवरा सलाह 

'भयकहलाता हूँ मैं प्रिये 
पर मैं तो हूँ 
सिर्फ 
प्यार का ही एक अन्य रूप 
प्रेम का दूसरा स्वरूप  
 - May 19, 2014

Monday, May 19, 2014

The Meeting




I am
No longer
Who I was
Yesterday

You are
Not the person
I knew
Once upon a time

"Meeting myself on the way"
Photo courtesy:
Aleksander Razumny Nordgarden Rødner (via Flickr)
Come,
Sit by me once more
Let's befriend each other
Tell me some stories
Hear my tales

Come,
Sit by me once more
Take my hands in yours

In the oceans of these eyes
Let's find each other again

Come,
Sit by me once more
Let me find
My Love again

Sit by me right here
Let us learn
To Live together again

  - May 11, 2014


Sunday, May 18, 2014

On Dancing - ...नृत्य...



Acrylic knife painting on 11x14 canvas


A touch
A look
A smile
The rhythm
Flowing naturally
Moving as one
Totally at ease
  
Connected at the heart
By the heart
Not thinking
Just being
Gliding around gracefully
   
Some drama
Some emotion
A spin, a whirl
Pure poetry in motion

Out of the blue
A move that's new
Some mis-steps
Laughter!
Tripping and
Toes complaining

A lightness
Sheer Joy
Endless possibilities
To enjoy
Looking deep into
Each other's eyes


-Seattle, 24 December, 2011

एक स्पर्श
एक नज़र
एक मुस्कान
सुर और ताल
स्वाभाविक सा बहना
एक हो कर चलना
है कितना आसान

जुड़े हुए से दिल
ह्रदय का मिलाप
ना सोचने की वजह
यहाँ सिर्फ है बस लय
सुरों की इनायत

थोड़ी नौटंकी
कुछ भावनाएँ
गोल घूमती गतिशील
शुद्ध कविताएँ

यकायक की वो
नयी सी चाल
बहके
जब कदम तो
हँसी छलके गाल गाल
पैरों की उँगलियों
का हाल है बेहाल

इक हल्कापन
सरासर
आनंद
अंतहीन संभावनाओं
का प्रबंध
आँखों
अंगों के
पवित्र मिलन की सुगंध


-अनुवादन - मई १६, २०१२

Tuesday, May 13, 2014

दर्पण - Mirrors


Acrylic and mixed media
knife painting on 11x14 canvas



दर्पणों में झाँकना,
अपने आप पर मुस्कुराना
ज़रूरी होता है...

बहुत वक़्त गुज़ारा है हमने
प्रतिबिम्बों से छुपते छुपाते
परछाइयों से घबराते...
इक डर सा लगता था शायद
अपनी ही नज़रों से  आप नज़रें मिलाते

आकस्मात कभी किसी अपने से
जब भी मुलाक़ात हुई
उनकी नज़रों में कुछ ऐसा पाया
जो खुद नहीं पहचाना था कभी
कोई ऐसी बात थी
जो दूसरों को भा जाती थी कहीं
पर खुद को हमने जब तलाशा
तो कुछ भी समझ ना आया

और आइनों से हम कतराते रहे

इक अँधेरा सा था छा रहा
दम घुटने लगा था मेरा
बेबसी से वो नाता
सन्नाटों में था दफना रहा

अँधेरों में, दर्पण भला कैसे नज़र आते हमें?

फिर अचानक कहीं से,
सूरज की इक हल्की किरण
इक आईने से जा टकराई
उस फीकी सी धूप में
ना जाने थी कैसी गरमाई
कि उस आईने में से हमें
इक मुस्कान, इक उम्मीद सी नज़र आई

टकटकी बाँध
उस दर्पण से हम जुड़ गए
जब खुद से सामना हुआ यकायक
भौंचक्के से हम रह गए
कई सवाल उठे, कई जवाब बुने
आँखें इस तरह बह उठीं
ना जाने क्या क्या कह गयीं
आँसुओं कि बौछारें जब थमी
तो देखा आईने पर
अब भी धूप थी खिली

आँसुओं से, आईने भी साफ़ हो जाया करते हैं

इस सफाई की शायद बहुत ज़रुरत थी हमें
हो सकता है इक सच्चाई की आवश्यकता कहीं थी हमें
दर्पण जब साफ़ हो जाएँ
तो प्रतिबिम्ब स्पष्ट नज़र आते हैं
अपने आप से नज़रें मिलाने पर
मन के जाले खुद मिट जाते हैं

अपने दर्पण से हमारी घनिष्ठ सी दोस्ती हो गयी

अब रोज़,
खुद से हम मिलते हैं
सजते और सँवरते हैं
खूब अब बतियाते हैं
मुस्कुराते-खिलखिलाते हैं
जब कभी कुछ समझ ना आये तो
आईने का सहारा ले लेते हैं
अपनी ही आँखों में हमें
प्रश्न और उत्तर सब मिल जाते हैं

इसीलिए,
दर्पणों में झाँकना,
अपने आप पर मुस्कुराना,
प्यार से सहलाना,
खुद अपना साथ निभाना...
ज़रूरी होता है

Seattle, October 22, 2011


  
Peeking into mirrors
Smiling at oneself
Is essential

I’ve spent a long time
Shying away from reflections
Scared of my own shadow
Fearful perhaps
Of locking eyes with
Myself

Often, those I held dear
Reflected something back
In their eyes
They recognized
Something within
That to me
Seemed elusive

And I kept hiding from the mirrors

A dark night of the soul
Hiding amidst the shadows
Claustrophobia overwhelmed
The silence of my own helplessness
Un-hinged, un-helmed

How could I see the mirrors in the dark?

Suddenly
A little ray of light
Touched the mirror
I don’t know how
That weak sunlight
Lit up some hope
Lit up a weak smile

The mirror arrested me
Meeting myself suddenly
I was mesmerized
Unending questions
A flurry of answers
Flowed through these eyes
When the rains stopped
I noticed there was still
Some sunshine left behind

Tears too, can clear up mirrors

Perhaps this cleansing was necessary
Meeting the truth essential
When the mirrors are clean
Reflections appear more clearly
Meeting oneself
Clears the cobwebs away


My mirror became a close friend

Now
I meet myself everyday
Have long conversations
Laugh and smile openly
When things get hard
I lean on my mirror
And in my own eyes
Find all the answers to my questions


And so,
Peeking into mirrors
Smiling at,
Loving myself
Being my own best friend
Is essential

- Translated from Hindi on Jan7, 2012