You shy
away
You fly
Far,
far away
Astray
You try
To
wrest control
You
plan
You
think
You
know it all
You
resist
Me on
every turn
You
desist
From
giving
Me my
turn
You
assume
You're
better off without me
So you
subsume
Your
true self
You put
on your mask
Get
busy with
A
meaningless task
But I'm
here
For a
reason
My dear
I'm
here
In
every season
You
shun me
Like a
pariah
How do
I tell you
I'm no
Messiah
I'm
only here
To show
you the way
To keep
you from going astray
So you
can see
Who
you're meant to be
Who you
really are
They
call me 'fear'
My dear
But I
am simply
The
other face
Of Love
-
May 19, 2014
|
तुम शर्माते हो
भाग जाते हो
दूर कहीं
गुमराह हो जाते हो
तुम नियंत्रण हथियाने
की कोशिश में
योजनाएँ बनाते हो
खयाली पुलओ पकाते हो
समझते हो तुम सब जानते हो
हर मोड़ पर विरोध
चाहे कितना भी
मैं कर लूँ अनुरोध
अब तो है मेरी बारी
पर नहीं!
तुम्हे लगता है
तुम मेरे बिना ही बेहतर हो
इक मुखौटा पहन
व्यस्त हो जाते हो तुम
काम अपना लेते हो अर्थहीन
पर मैं यहीं हूँ प्रिये
कोई तो है कारण
मैं हूँ यहीं
चाहे जो भी हो मौसम
अछूत हूँ जैसे मैं
सदा तुम जताते हो
मसीहा न सही
आओ कुछ बताता हूँ
सिर्फ हूँ यहाँ
रास्ता दिखाने के लिए
भटकने से तुम्हें
बचाने के लिए
ताकि देख सको तुम भला
कौन बन सकते हो तुम
कौन हो तुम आप से ये
कर सको मशवरा सलाह
'भय' कहलाता हूँ मैं प्रिये
पर मैं तो हूँ
सिर्फ
प्यार का ही एक अन्य रूप
प्रेम का दूसरा स्वरूप
-
May 19, 2014
|
Saturday, May 24, 2014
A message - एक संदेश
Monday, May 19, 2014
The Meeting
I am
No longer
Who I was
Yesterday
You are
Not the person
I knew
Once upon a time
"Meeting myself on the way" Photo courtesy: Aleksander Razumny Nordgarden Rødner (via Flickr) |
Sit by me once more
Let's befriend each other
Tell me some stories
Hear my tales
Come,
Sit by me once more
Take my hands in yours
In the oceans of these eyes
Let's find each other again
Come,
Sit by me once more
Let me find
My Love again
Sit by me right here
Let us learn
To Live together again
- May 11, 2014
Sunday, May 18, 2014
On Dancing - ...नृत्य...
|
A touch
A look
A smile
The rhythm
Flowing naturally
Moving as one
Totally at ease
Connected at the
heart
By the heart
Not thinking
Just being
Gliding around gracefully
Some drama
Some emotion
A spin, a whirl
Pure poetry in
motion
Out of the blue
A move that's new
Some mis-steps
Laughter!
Tripping and
Toes complaining
A lightness
Sheer Joy
Endless
possibilities
To enjoy
Looking deep into
Each other's eyes
-Seattle, 24 December, 2011
|
एक स्पर्श
एक नज़र एक मुस्कान सुर और ताल स्वाभाविक सा बहना एक हो कर चलना है कितना आसान जुड़े हुए से दिल ह्रदय का मिलाप ना सोचने की वजह यहाँ सिर्फ है बस लय सुरों की इनायत थोड़ी नौटंकी कुछ भावनाएँ गोल घूमती गतिशील
शुद्ध कविताएँ
यकायक की वो नयी सी चाल बहके जब कदम तो हँसी छलके गाल गाल पैरों की उँगलियों का हाल है बेहाल इक हल्कापन सरासर आनंद अंतहीन संभावनाओं का प्रबंध आँखों व अंगों के
पवित्र मिलन की सुगंध
-अनुवादन - मई १६, २०१२
|
Tuesday, May 13, 2014
दर्पण - Mirrors
Acrylic and mixed media knife painting on 11x14 canvas |
दर्पणों में झाँकना,
अपने आप पर मुस्कुराना
ज़रूरी होता है...
बहुत वक़्त गुज़ारा है
हमने
प्रतिबिम्बों से छुपते
छुपाते
परछाइयों से घबराते...
इक डर सा लगता था शायद
अपनी ही नज़रों से आप नज़रें मिलाते
आकस्मात कभी किसी अपने
से
जब भी मुलाक़ात हुई
उनकी नज़रों में कुछ ऐसा पाया
जो खुद नहीं पहचाना था
कभी
कोई ऐसी बात थी
जो दूसरों को भा जाती थी कहीं
पर खुद को हमने जब तलाशा
तो कुछ भी समझ ना आया
और आइनों से हम कतराते रहे
इक अँधेरा सा था छा रहा
दम घुटने लगा था मेरा
बेबसी से वो नाता
सन्नाटों में था दफना रहा
अँधेरों में, दर्पण भला कैसे नज़र आते हमें?
फिर अचानक कहीं से,
सूरज की इक हल्की किरण
इक आईने से जा टकराई
उस फीकी सी धूप में
ना जाने थी कैसी गरमाई
कि उस आईने में से हमें
इक मुस्कान, इक उम्मीद सी नज़र आई
टकटकी बाँध
उस दर्पण से हम जुड़ गए
जब खुद से सामना हुआ यकायक
भौंचक्के से हम रह गए
कई सवाल उठे, कई जवाब बुने
आँखें इस तरह बह उठीं
ना जाने क्या क्या कह गयीं
आँसुओं कि बौछारें जब थमी
तो देखा आईने पर
अब भी धूप थी खिली
आँसुओं से, आईने भी साफ़ हो जाया करते हैं
इस सफाई की शायद बहुत ज़रुरत थी
हमें
हो सकता है इक सच्चाई की आवश्यकता कहीं थी हमें
दर्पण जब साफ़ हो जाएँ
तो प्रतिबिम्ब स्पष्ट नज़र आते हैं
अपने आप से नज़रें मिलाने पर
मन के जाले खुद मिट जाते हैं
अपने दर्पण से हमारी घनिष्ठ सी दोस्ती हो गयी
अब रोज़,
खुद से हम मिलते हैं
सजते और सँवरते हैं
खूब अब बतियाते हैं
मुस्कुराते-खिलखिलाते हैं
जब कभी कुछ समझ ना आये तो
आईने का सहारा ले लेते हैं
अपनी ही आँखों में हमें
प्रश्न और उत्तर सब मिल जाते हैं
इसीलिए,
दर्पणों में झाँकना,
अपने आप पर मुस्कुराना,
प्यार से सहलाना,
खुद अपना साथ निभाना...
ज़रूरी होता है
Seattle, October 22,
2011
|
Peeking into mirrors
Smiling at oneself
Is essential
I’ve spent a long time
Shying away from reflections
Scared of my own shadow
Fearful perhaps
Of locking eyes with
Myself
Often, those I held dear
Reflected something back
In their eyes
They recognized
Something within
That to me
Seemed elusive
And I kept hiding from the mirrors
A dark night of the soul
Hiding amidst the shadows
Claustrophobia overwhelmed
The silence of my own helplessness
Un-hinged, un-helmed
How could I see the mirrors in the dark?
Suddenly
A little ray of light
Touched the mirror
I don’t know how
That weak sunlight
Lit up some hope
Lit up a weak smile
The mirror arrested me
Meeting myself suddenly
I was mesmerized
Unending questions
A flurry of answers
Flowed through these eyes
When the rains stopped
I noticed there was still
Some sunshine left behind
Tears too, can clear up mirrors
Perhaps this cleansing was necessary
Meeting the truth essential
When the mirrors are clean
Reflections appear more clearly
Meeting oneself
Clears the cobwebs away
My mirror became a close friend
Now
I meet myself everyday
Have long conversations
Laugh and smile openly
When things get hard
I lean on my mirror
And in my own eyes
Find all the answers to my questions
And so,
Peeking into mirrors
Smiling at,
Loving myself
Being my own best friend
Is essential
- Translated from
Hindi on Jan7, 2012
|
Subscribe to:
Posts (Atom)