धूप
कभी घनी रातों से गुज़रते
कभी अँधेरे तूफानों से जूझते
अक्सर ये भूल हैं जाते कहीं ना कहीं तो धूप खिली है कहीं ना कहीं कोई यादें हैं छिपी कहीं ना कहीं हैं कई उम्मीदें भरी कहीं ना कहीं सपनो का बसेरा है कहीं ना कहीं ख्वाहिशों का डेरा है कहीं ना कहीं इक नया सवेरा है बारिशें क्यों आती हैं आखिर? घटाएँ क्यों छा जाती हैं?
इन सवालों से परे भी
कई जवाब हैं मुमकिन बादलों के ऊपर उठिए तो हर ओर मिलती है सूरज की किरण
रात की सुरंग से निकल
सूरज अपना रास्ता चुन लेता है कभी फीकी सी तो कभी तेज़ सुनहरी धूप के उपहार रोज़ दे जाता है चाहे कितना लम्बा हो ये सफ़र कितनी ही लम्बी रात हो बाकी कितने ही हों उसके पहर मिल जाते हैं साहिल कहीं ना कहीं खिल जाती है धूप, यहाँ भी, कभी ना कभी
Enroute – Seattle-San Jose,
December 25, 2011
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Sunshine
Navigating tumultuous storms
So easy to forget
Somewhere, sunshine transforms
Somewhere exist Memories tucked away Somewhere blossom New hopes, making their way
Somewhere
New dreams do thrive Somewhere New wishes can survive Somewhere A new dawn is alive
Why do the rains pour down?
What makes the clouds dark?
Moving beyond questions
Reveals beautiful possibility
Soaring high above
the curtains
Shines the light in all its beauty
Emerging from the dark tunnel
The sun picks his path
Some days, bringing such a personal
Present of languid warmth
And on others, scorching heat that shrivels
No matter how tiring the journey
Or how long the dark night
The tranquil shore embraces the sea
The lover and beloved do unite
Opening the eyes helps to see
A glorious burst of sunlight
Translated, April 2012
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Saturday, March 2, 2013
Reflections: Sunshine
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