इक कविता का जन्म
सोचते थे कैसे लोग शायरी कर लेते हैं?
ऐसे ख़ूबसूरती से ख्यालों को
इतनी आसानी से
शब्दों में कैसे यूँ पिरो देते हैं...
और अब ऐसा आलम है
ख़ुद बख़ुद कवितायेँ जन्म ले रहीं हैं यहाँ
मन के कोनो से न जाने कैसे
फूट फूट कर
रोज़ एक नयी नग्म साँसे भरती है
अपने से किसी का वापिस मिल जाना
अपने वजूद को फ़िर से महसूस कर पाना
मन के जाले जब साफ़ हो जाते हैं शायद
इस नए से आईने में
अपने आप को पहचान जाते हैं
क्या यहीं से होती है शुरुआत कविताओं की?
क्या नग्मे साफ़ आईने ढूंढते हैं?
ख़ुद को दिखाने से पहले
आप को ख़ुद से मिला देते हैं
(New Delhi,
September 2, 2011)
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The
Birth of a Poem
Always
wondered
How do
people write poetry?
Thread
their thoughts into words
So
easily, so beautifully
And now
Poems
seem to spring up
Of their
own volition
From the
corners of this mind
I'm not
sure how
A new
song breathes new life
Each day
Finding
a long-lost friend
Meeting
yourself once again
When the
cobwebs of the mind
Get
cleared away for certain
This new
mirror
Shows me
a glimpse of myself
Is this
how poems take birth?
Do songs
seek clear mirrors?
Before
revealing themselves,
They
make sure I've met myself
-Translated
January 4, 2012
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Wednesday, February 27, 2013
Reflections: The Birth of a Poem
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